भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठंड लग रही है मुझे / ओसिप मंदेलश्ताम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठण्ड लग
रही है मुझे

वसन्त पारदर्शी है
पित्रअपोल पहन रहा है
रोंएदार हरे वस्त्र
छत्रिक-माछ-सी फिसल रही हैं
निवा नदी की लहरें

धीरे-धीरे
घेर रही हैं मेरे मन को

नदी के उस तट पर
प्रकाश छलकाती दौड़ रही हैं मोटरें
जैसे उड़ रहे हों
लौह-गुबरैले और पतंगे

आकाश में
स्वर्ण-बकसुए से
झिलमिला रहे हैं सितारे

पर कैसे भी वे
ख़त्म नहीं कर पाएँगे
मरकत से भारी
इस मरकती समुद्री जल को

शब्दार्थ :
पित्रअपोल=लेनिनग्राद, पितिरबूर्ग या पीटर्सबर्ग नगर का एक साहित्यिक नाम ।

(रचनाकाल : 1916)

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                Осип Мандельштам
       Мне холодно. Прозрачная весна…

Мне холодно. Прозрачная весна
В зеленый пух Петрополь одевает,
Но, как медуза, невская волна
Мне отвращенье легкое внушает.
По набережной северной реки
Автомобилей мчатся светляки,
Летят стрекозы и жуки стальные,
Мерцают звезд булавки золотые,
Но никакие звезды не убьют
Морской воды тяжелый изумруд.

1916 г.