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ठक ! ठक ! ठक !
वैद्य बजाता है उँगलियाँ
मेरी छाती पर
और पूछता है रहस्य मेरी देह का
ठक ! ठक ! ठक !
मेरी छाती घरघराती है
और बताती है रहस्य मेरे गेह का
ठक ! ठक ! ठक !
मन होता हूँ
मैं भी खटखटाऊँ किसी का दिल
जो खोल दे अपना मन मेरे लिए ।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय