Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 01:12

ठण्ड / सुदर्शन वशिष्ठ

ईश्वर की तरह
अदृश्य
स्पर्ष भी नहीं
नहीं आकार प्रकार
अहसास कराती
पल-पल
फिर भी निराकार।

जुड़ कर
सट कर
रहना सिखाती
दूरियाँ मिटाती
बड़ा होकर
सिमटना सिखाती।

गरीब की लुगाई
अमीर की जमुहाई।

ठण्ड बड़ी दबंग
चलती सँग-सँग।