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ठस्स होती जिंदगी / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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ठस्स होती जिंदगी में
बचा ही क्या है
खोने को और बोने को
बीज अंकुरित होने से पहले ही
नष्ट हो गए
गोद में खिलाने से पहले ही
भ्रूण हत्या
अपनी फिगर खराब न हो जाए,
बोतल का दूध
दूसरे के कंधे पर बंदूक
अपना उल्लू सीधा करते लोग
जिस्म बेचती आधुनिकाएं
किडनी किंग
गोदामों में बंद पड़ी किताबें
चौराहों पर एंट्री उगाहते
ट्रैफिक हवलदार
खोने को मुद्रा शेयर बाजारी-कारोबार
अवैध निर्माण, प्रभात फेरी
हर-हर महादेव का जोर
बजरंग दल, सिमी की खबरें
नेताओं का भाषण
आर्थिक मंदी से घबराए लोग
सोना महंगा होगा
बाजार में खरीदारी का जोर
हलवाईयों की दुकान में
सजी मिठाइयां इतराती हैं
मॉल में पंडित जी ‘हाथ’ देखते हैं
चौराहे चुगलियां करते हैं
मॉरिस-नगर हो या
छात्रावास के दरवाजे
सभी उमंग से भरे पड़े हैं
दुर्घटना, घटना, बहना,
गहना, सजना, बिकना
अनिवार्य अंग हो चुके हैं
रोजमर्रा के
बूढे भी दे रहे गति
वर्तमान को
समाज को
अपने अतीत पर इतराते हैं
च्वयनप्राश खाते हैं
अनार का रस पीते है।
महिलाएं किटी में या कीर्तन में रमी हैं
और अधेड़ होते मर्द
रेव पार्टी में मस्त हैं
नीम हकीम भी ऐंठ रहे
निम्न आय वाले रोगियों को
बार बालाएं ‘बार’ से निकल
नौटंकियों में बारातों में
झक़ास मस्त है
व्यापारी अपना मुनाफा कमाने में व्यस्त है
चाहे मिलाना पड़े उसे आलुओं को सीमेंट में
उसको फर्क नहीं पड़ता
ना ही पड़ेगा
सरकारी मास्टर ट्यूशन पर
जोर देता है
राशन की चीनी कार्डधारियों को
नहीं मिलती
कितने ही फार्म भर लो
डी.डी.ए. क्या जी.डी.ए. का
मकान क्या फ्लैट नहीं निकलेगा
25 की उम्र में रोजगार
कार्यालय में आवेदन कर गए
अगर गलती से
रिटायर उम्र तक भी चिट्ठी
नहीं आएगी कि प्यारे
नौकरी खाली है
मकान बनाओ तो रिश्वत
लाइसेंस बनाओ तो रिश्वत
और तो और
डेथ सर्टिफिकेट के लिए भी
‘घूस’ माँगते हैं
क्या जमाना है यारो
कुछ महिला पत्रकार
‘नीट’ पीती है
शाम होते ही विचारों का
मंथन प्रेस क्लब में
दिखना शुरू होता है
कला दीर्घाओं को आत्मसात
करते कला चिपकू
श्रीराम सेंटर में
या तो नाटक देखेंगे
या नुक्कड़ पर चाय पियेंगे
कुछ साथी हो संुदर से
तो समोसा लेंगे
कहेंगे, नहीं तो
सुंदर-सा बहाना ठांेक कट लेंगे!
‘मेट्रो’ में आते लोग
जाते लोगों की
जीवन शैली बदल गई है
लेकिन रिक्शा वालों की नहीं
दस बनते हांे तो पच्चीस माँगते हैं
अपने को धकेलते लोग
चल रहे हैं
मुरगे बिक रहे हैं
कहीं 100 में कहंी 120 में
क्वालिटी का भरोसा नहीं
हलक से उतर जाएंगे
तभी न ठीक होंगे
दो पेग पी चुके
घिस्सू ने कहा था
कबाड़ियों का संसार भी
विचित्र है
जमाने भर का गंद बटोर लायेंगे
बदले में देंगे
स्टील के बर्तन
दो साड़ी की जगह एक बाल्टी
चार पेंट की जगह
एक स्टील की परात
इसी उधेड़बुन में लगी है
औरतें!
औरतें जानती हैं
खर्च करना
गृहस्थी बनाना और
बिगाड़ना
या बुद्धू बनाना
तरीके से सलीके से
आदमी बुद्धू बनता है
यह वह भी जानता है
टेलिविजन चैनल समाचार बनाता है
इतना पेलता है
कि सोचने वाला दिमाग सुन्न हो जाए
रही सही ताकत कहीं लुट जाए
‘वियाग्रा’ को अपनाते लोग
लोग ही कहां रहे
अध्यात्म से दूर अब
उन्होंने राह पकड़ ली है
भोग की
और अब वे निकल गए
उस गली से
जहां नुक्कड़ को सड़क
मुड़ती है
नाले से सटे श्मशान घाट को
लकड़ियों के ढेर पर लेटा हो
फूलसिंह पूर्व नेता
या दस्यु सुंदरी चमेली बाई
तो पत्रकार साथी
कैमरा कंधे पर लटकाये
यहां-वहां शॉट लेंगे
या किसी कि ‘बाइट’
और निकाल लेंगे
‘नवयौवना’ एक ही रात में
कंप्रोमाइज कर बैठी
एक ‘सी’ ग्रेड की फिल्म
में अभिनेत्री और
फिर
वही होना था जो
उनका हुआ था
जी हां!
मेहनत करना कोई नहीं चाहता
पंजाब के गांव बिहारियों से
भरे पड़े हैं
अपने खेत में जुतना
मजूरी करना पसंद नहीं
अमृतसर हो या दिल्ली
गाजियाबाद हो या फरीदाबाद
रिक्शा चलाते मिल जायेंगे
बीसियों, तीसियों
चौराहे भरे पड़े हैं
ऐसे लोगों से
जिन्हें काम की तलाश है
और कामियों को कामगारों की
प्रूफ रीडरों, लेखकों
कवियों को मंच की
रचनाओं को कुशल संपादक की
रचनाओं को प्रकाशक की
यानि कारवां लंबा है
ओ माई
क्या गंगा में डुबकी लगाई है
जरा वहां लेना
वहां काई बहुत थी
शायद उसने सुना नहीं
निकल गया
ऐसे ही जिंदगी निकल
जाती है
बहुत पास से और बहुत पास रहते हुए
भी
दो पड़ोसी कभी नहीं मिल पाते
पति-पत्नी में अनबन
रहती है
पता नहीं
जिंदगी कहां रहती है ?
कहां हो जिंदगी
तुम्हारी ही तलाश है
मेरा पता नोट कर लो
या मेरे मेल पर मेल कर देना
मिलते ही जवाब दूंगा
जवाब मुझे पसंद है
चाय पिलाऊंगा गरम-गरम
खांसी ठीक हो जाती है
माँ कहती थी
माँ तो रही नहीं
कोई बात नहीं
चाय तो तुम्हें
पिलाऊंगा ही
यह वायदा रहा
और वायदा मैं -
कभी तोड़ता नहीं
सुना तुमने...