भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठहराव जिंदगी में दुबारा नहीं मिला / देवी नागरानी
Kavita Kosh से
ठहराव जिंदगी में दुबारा नहीं मिला
जिसकी तलाश थी वो किनारा नहीं मिला|
वर्ना उतारते न समंदर में कश्तियां
तूफान आया जब भी इशारा नहीं मिला|
हम ने तो खुद को आप संभाला है आज तक
अच्छा हुआ किसी का सहारा नहीं मिला|
बदनामियां घरों में दबे पांव आईं
शोहरत को घर कभी भी, हमारा नहीं मिला|
खुशबू, हवा और धूप की परछाइयां मिलीं
रौशन करे जो शाम, सितारा नहीं मिला|
खामोशियां भी दर्द से ‘देवी’ पुकारतीं
हम-सा कोई नसीब का मारा नहीं मिला|