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ठहरी केॅ सुनीं लेॅ-सौंनीं बदरिया / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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ठहरी केॅ सुनीं लेॅ, सौंनीं बदरिया!
लेनें जा, तनीं सा, हमरो खवरिया।
मृगनयनी गोरी छै,
पान सनक ठोरं
केश लहरैला पर,
नाचै छै मोर।
चलला पर मोहै छै पतली कमरियां
ठहरी केॅ सुनीं लेॅ, सौंनीं बदरिया!
लेनें जा, तनीं सा, हमरो खवरिया।
जब सें बिछुड़ली छै,
नींदो नैं आबै छै।
रही-रही ठनकाँ
दिल केॅ दहलाबै छै।
आँख चौंधियाबै छै, नटखट बिजुरिया।
ठहरी केॅ सुनीं लेॅ, सौंनीं बदरिया!
लेनें जा, तनीं सा, हमरो खवरिया।
लिखी-लिखी गाबै छीयै,
विरहा केॅ गीत।
करेजा केॅ शालै छै
साथ वाला प्रीत।
हुनकेू दीवाना हम जब ताँय उमरियां
ठहरी केॅ सुनीं लेॅ, सौंनीं बदरिया!
लेनंे जा, तनीं सा, हमरो खवरिया।
धरती खोजबै, पानी खोजबै,
खोजबै प्रिया आकाश में।
आगिन में पैठी केॅ खोजबै,
खोज बै पवन उनचास में।
आखिर धर्मराज सें पूछबै मिलतै कहाँ नजरिया?
ठहरी केॅ सुनीं लेॅ, सौंनीं बदरिया!
लेनंे जा, तनीं सा, हमरो खवरिया।