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ठहरी केॅ सुनीं लेॅ (गीत) / कस्तूरी झा 'कोकिल'

ठहरी केॅ सुनीं ले घटा पूबरिया।
पूरबे में मिली जैथौं हमरी पियरिया।
चारों दिश बगीचा छै,
चंडी माय केॅ धाम।
‘‘द्विज’’ जी केॅ गाँव छीकै,
कविवर महान।
पूजापाठ धूमधाम भगतिन, फुलधरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ घटा पूबरिया।
पूरबे में मिली जैथौं हमरी पियरिया।
वहीं ठाँ नैहरऽ छै,
टेकै छै माथोॅ।
सखी सहेली केॅ
मिलै छै साथोॅ।
गोरी मृगनयनी छै, पतली कमरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ घटा पूबरिया।
पूरबे में मिली जैथौं हमरी पियरिया।
डेढ़ साल होय गेलै,
आबी जैथौं जलदी।
खोयछा में मिली जैतै
दूव, धान, हलदी।
राहै पर राखभौं जी! हरदम नजरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ घटा पूबरिया।
पूरबे में मिली जैथौं हमरी पियरिया।