हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ठहर बटेऊ ठहर बटेऊ के नै जाइये
म्हारे बाग का मिसरी मेवा चाख कै नै जाइये
तेरे हाथ की रै माली की रोटी ना भावै
कच्चे पाक्के फल तोड़ै मनै आच्छे ना लागैं
सेठ की सिठाणी पै तेरी रोटी पुआ द्यूंगी
मांज कै नै बालटी जल नीर पिता द्यूंगी