आज आए
ठाकुरप्रसाद सिंह
मिलकर हुई आकस्मिक
अंतरंगी खुशी
बाग-बाग हो गया दिल
ज्ञात हुआ
आ गया बसंत
मेरे ही मकान में
बिना बुलाए
अब महकते ही रहेंगे भेंट के फूल,
गड़ें चाहे शूल-
उड़े चाहे धूल
रचनाकाल: २७-०७-१९७७
आज आए
ठाकुरप्रसाद सिंह
मिलकर हुई आकस्मिक
अंतरंगी खुशी
बाग-बाग हो गया दिल
ज्ञात हुआ
आ गया बसंत
मेरे ही मकान में
बिना बुलाए
अब महकते ही रहेंगे भेंट के फूल,
गड़ें चाहे शूल-
उड़े चाहे धूल
रचनाकाल: २७-०७-१९७७