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ठारहे घनश्याम उतै / ठाकुर
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ठारहे घनश्याम उतै, इत मैं पुनि आनि अटा चझिांकी।
जानति हौ तुमं ब्रज रीति, न प्रीति रहै कबं पल ढांकी॥
'ठाकुर कैसें भूलत नाहिनै, ऐसी अरी वा बिलोकनि बांकी।
भावत ना छिन भौन को बैठिबो, घूंघट कौन को लाज कहां की॥