भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठावो-ठेको / कुंदन माली
Kavita Kosh से
ठावा-ठेका म्हेल मालि़या
ठावो-ठेको रूप
ठावी-ठेकी छत्तर छाया
ठावी-ठेकी धूप
ठावा-ठेका लग्गा-सग्गा
ठावो-ठकी भीड़
ठावी-ठेकी गैल घरां री
ठावी-ठेकी पीड़
ठावा-ठेका चूलाचाकी
ठावा-ठेका मिलणा-जुलणा
ठावी प्रेमल घास
ठावी-ठेकी टाबर टोल़ी
ठावी-ठेकी चाल
ठावी-ठेकी करम कमेड़ी
ठावा-ठेका हाल
ठावी-ठेकी गांठाँ धनरी
ठावी-ठेकी मूछ
ठावी-ठेकी धजा धरम री
ठावी-ठेकी पूछ
ठावा-ठेका झगड़ा-टंटा
ठावी-ठेकी राड़
ठावा-ठेका पंच-चौंतरा
ठावा-ठेका लाड़
ठावी-ठेकी पाप पोटली
ठावी-ठेकी लूट
ठावी-ठेकी ताल बाबड़ी
ठाबो-ठेका डूब !