भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठिठके हुए दिगम्बर हैं / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इसकी-उसकी बात करें क्या
ठिठके हुए दिगम्बर हैं !

वामपन्थ पर सरपट दौड़े
पूँजीवादी श्रम के घोड़े
दक्षिणपन्थी यानों में भी
जनहित के कुछ नारे<ref>नारा हरियाणवी में युवा बैल को भी कहते हैं ।</ref> जोड़
लेकिन निकले सभी फिसड्डी
कैसे अव्वल नम्बर है !
गाँव उजाड़े नगर बसाए
नगरों से चल महानगर तक
सारी दुनिया गाँव बनेगी
फिर आए हम उसी डगर तक
भूखे जंगल से सहमे
पर गाँव शहर के डम्बर हैं !

सिंहासन को
किए सुशोभित
वन भर को जो आँख तरेरें
दिखा बतीसी
पूँछ हिलाते
जिनके आगे शेर-बघेरे
हुआँ-हुआँ से
पोल खुलेगी
ओढ़े ये बाघम्बर हैं !

शब्दार्थ
<references/>