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ठुमरियों का महाकाव्य / कल्पना पंत
Kavita Kosh से
हाथ भर की रसोई
बित्ते भर का झरोखा
वहीं से आसमान बुहारती हुई वह
ठुमरियों का महाकाव्य रच रही है।