भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठूँठ पेड़ / अहिल्या मिश्र
Kavita Kosh से
अपनी सूखी टहनी
हिला-हिला कर
करता हवा के झोंकों का
आलिंगन।
अवश हाथ
विवश मन
करुण ओठ का
कंपन।
बाँध लेने को हवा की
अठखेलियाँ
समेटने को कलरव
उन्मुक्त गगन-विहार
का अभिनव
चुम्बन।
मन की ललक
न सकी झलक
क्यों रचा विधि ने
सूखा तन
और
सरस मन?