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ठूंठ की मुस्कान / सांवर दइया
Kavita Kosh से
मेरी आंखों में अटक गई
ठूंठ की मुस्कुराहट
दीखी मुझे
ठूंठ के सहारे खड़ी
एक लता
अपने मीठे फलों की सुगंध साथ लिए
कह रहा था ठूंठ-
खड़ी रह
बस ऐसे ही खड़ी रह
यह सुन कर बोली लता-
अरे ! देखो तो सही
बूढ़े हो चले की अक्कल खराब हुई !
अनुवाद : नीरज दइया