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ठेठ सूनापन बकुल-सा / नईम

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ठेंठ सूनापन बकुल-सा झर रहा।

फुनगियों पर टँग गई
असहाय पीली धूप
निपट बलि के पात्र-सा
गुमसुम खड़ा है रूप।

एक कमरे से अलग घर
दूसरे को कर रहा।

बेअसर साबित हुईं
तब, ले दुआएँ कौन?
भिक्षुणी-सी पास से
गुज़री हवाएँ मौन;

मारनेवाला समय चुपचाप
क्षण-क्षण मर रहा।

मसीहा मौसम कहाँ,
किस साधना में लीन?
आज दाता क्यों हुआ है
चायकों से दीन?

कर्ज़ जो छोड़ा गया था ब्याज उसका भर रहा।
ठेंठ सूनापन बकुल-सा झर रहा।