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डग-मग होता जा रहा / अनुराधा पाण्डेय
Kavita Kosh से
डग-मग होता जा रहा, अब मन का विश्वास।
पुनः व्याधि के बाद नव, आयेगा मधुमास।
आयेगा मधुमास, लभेंगे अच्छे दिन भी।
काश! लभें पुनि पुष्प, शूल तब लेंगे गिन भी।
किन्तु रिसे है रक्त, सतत ही लतपथ हैं पग।
लँगड़ी मानव जाति, हुई चलती है डग-मग॥