भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डरते हैं प्रेम से / निवेदिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे प्रेम करना चाहते हैं
पर डरते हैं
उसकी परछाइयों से
डरते हैं इसकी आंच से
डरते हैं इसकी खुशबू से
डरते हैं प्रेम के मुक्ति राग से
डरते हैं कहीं प्रेम
अंधेरे कमरों से निकलकर
बारिश की तरह बरस न पड़े
वे भींगना चाहते हैं पर
खिड़कियां, दरवाजे बंद कर.