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डरी हुई चिड़िया का मुकदमा (कविता) / कर्मानंद आर्य

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एक :
एक डरी हुई चिड़िया पिंजरे में बंद है
खूनी पंजों से बाहर कैसे जायेगी

तम्बाकू मलते हुए है तोंदू दरोगा ठकुरई अंदाज में
अपनी भाषा में सिपाही को समझाता है
क्या तुम जानते हो दो-दो पांच कैसे होते हैं
सिपाही अपनी सूड़ हिला देता है

हिंदी की रीतिकालीन कविता की तरह
वह प्रत्येक अंग की शालीन सफाई करता है
जैसे सब लोग करते हैं मौका पाकर
एक ही सांस में सारी बातें मात्रिक छंदों में समझा देता है
जैसे समझाता है नाई का उस्तरा

वकील बन मुकदमे से पहले का हार समझाता है
लम्बे अनुभव का की दुहाई देता है
बताता है भय भूख भ्रष्टाचार
‘बड़का बाबू का किहे रहिन ओकरा साथे जानत हौ’

पंडित बन धर्म की दुहाई देता है
समझाता है लाभ लोभ
बस अब राम नाम लो जो कुछ हुआ सब भूल जाओ
बताता है इस करनी का फल वहां मिलेगा जहाँ केवल देवता रहते हैं
 
न्यायालय में क्या तेरा बाप बैठा है जो फाइल ढूंढेगा
पूरे मुकदमे का बहीखाता बताता है बन महाजन
माँबहिन की आरती उतारता हुआ बुदबुदाता है
अधूरी जांच लटक जाती है लिखी फाइल में

चिड़िया बकरियों को आवाज लगाती है
मुर्गियों से प्रार्थना करती है
सामान दुःख भोगे हुए दूसरी चिड़िया से गवाही के लिए कहती है
शुरुवाती दिनों के बाद गवाह पलट जाते हैं

मुकदमा पीढ़ियों का दर्द बन जाता है
दो :
परदे के पीछे
पिंजरे में बंद चिड़िया का एक राजनीतिक जुगाड़ है
उसकी जाति का छुटभैया नेता शिफारिस में आता है
न नुकुर के बाद बोलेरो वाला दरोगा चायपानी के बाद
किसी कमजोर धारा में मुकदमा लिखता है
अपराधी को सूट करने वाली धारा अचानक हँस देती है

न्याय की अंधी गलियों में सबकी आखों पर काली पट्टी है
जहाँ अपारदर्शी न्याय की मक्खियाँ गोल भिनभिनाती हैं
सिर्फ न्याय की देवी देखती हैं राजनीतिक ओहदा
कोलेजियम सत्ता की दारू पी सो जाता है
 
अब शुरू होती है एक अदद ऐसे वकील की खोज
जिसका जज से जुगाड़ हो या उसकी रिश्तेदारी में आता हो
जीतने के दावे के साथ अच्छे वकील के जिरह में
जज का हिस्सा है जानती है पिंजरे की चिड़िया
महगाई गरीबी और गुरवत में टूटी हुई कमर
अच्छे वकील की तलाश में झुक जाती है

बाकायदा गवाहों की एक पलटन है चिड़िया के पास
जिन्होंने सामान दुःख भोगा है
भूख की लकीरे खिच गई हैं उनके चेहरे पर
जिनके जिस्म पर इराकी घाव अभी दिख रहे हैं ऐसे दलित देश
मुकदमे की ईमानदारी पर शक करते हैं
 
दिल्ली पटना झाबुआ गोहाना बाथे
वर्णवादी फौजें रोज मारती हैं जिन्हें
उनके कपड़े उतरती हैं
जिस देश में सबको पिटने की आदत हो
वहां जज वाली अदालत खामोश बैठी रहती है

चिड़िया ने एक लम्बी उम्र कैद में गुजार दी है
अतः जेल उसे बाहर के घर से सुरक्षित लगती है
क्योंकि वहां उसके लिए सिपाही तैनात हैं

सूरज ऱोज सुबह भैसे की तरह गुर्राता है
चिड़िया की आत्मा भैसे की आँख में झांक लेती है