भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डरो / विष्णु खरे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया

न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो


सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया

न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था


देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो

न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे


सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो

न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें


पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है

न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो


लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं

न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी


डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है

न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर