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डर के बारे में नहीं / मिथिलेश कुमार राय
Kavita Kosh से
मुस्कुराहट के बारे में
और नीन्द के बारे में सोचना था,
ख़त के जवाब लिखने थे,
और चान्द की शीतलता को महसूसना था ।
चाहे जिस ओर भी देखूँ,
आँखें हरियाली देखें ,
पायल की रुनझुन
और मीठी नीन्द में
सुनहरे सपने के बारे में सोचना था ।
भूख के बारे में,
रोटी के बारे में ,
और रोज़गार के बारे में तो कतई नहीं सोचना था ।
चेहरे पर एक रौनक होती है,
आँखों में जो चमक होती है,
सिर्फ़ उसके बारे में सोचना था ।
डर के बारे में बिलकुल नहीं सोचना था ।