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डर / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
मैंने मस्जिदों को देखा
मन्दिरों की ज़ियारत की
गिरजे में भी गया
ख़ुदा कहीं नहीं था
कहीं भी नहीं
थी तो बस इनसान की लाज़वाल कमज़र्फ़ी
बदसूरती
और गुनाह की बेहिसाब कालिख
मैंने पलट ख़ुद को देखा और डर गया ।