भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर / नरेश सक्सेना
Kavita Kosh से
चट्टानों के आसपास फूल उन्हें खिलना सिखाते रहे
चट्टानें डरती रहीं
उन्हें दिखता रहा फूलों का मुर्झाना।