भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर / निशान्त
Kavita Kosh से
कितना कष्टपूर्ण है
किसी शोकपूर्ण व्यक्ति के पास
सांत्वना प्रदान करने जाना
विशेष कर जब
हम हों पूरे सुखी
दुःखी व्यक्ति को
दुःखी बनकर मिलें तो ठीक
उसूल के चलते
होना पड़ता है
जान बुझकर गमगीन
नहीं तो रहता है डर कि
अगला इसे
न ले ले कहीं अन्यथा
कभी कभी पूरी सावधानी के बावजूद
लगता है कि
चोरी हमारी पकड़ी जा रही
और यह भी कि
कहीं लग न जाए
हमारे सुखों को नजर