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डर / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
दहशत उछालता
खुली खिड़की का डर
भीतर तक झाँकता है
बन्द करो न खिड़की
कौन तुम्हें पालता है
पर बन्द खिड़की का डर
उससे भी बढ़कर
जान लेवा
जान लेना।