भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / लीलाधर जगूड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिधर चिड़िया गा रही थी
उधर से भी हटा मैं कि वह उड़ न जाए
जिधर फूल खिल रहा था
उधर पीठ फेर दी कि मुरझा न जाए
इस तरह आया एक भूला हुआ गाना
एक झरा हुआ फूल मुझे याद
एक भरा हुआ फूल मुझे याद
वर्तमान को इस तरह अतीत बनाया पतझर ने ।