Last modified on 6 अगस्त 2018, at 16:31

डर / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

आदमी से आदमी का डर।
बड़ा उपकार है परस्पर डर का
हमारी ज़िन्दगी पर वर्ना
अणु विस्फोटों की होड़ से
मानव को बचाता कौन
आदमी की राख भी मिलती नहीं।

जिस बंगले के आगे
चौकीदार रहता हो
उसमें डर का निवास है।
जहाँ कुछ खोने को नहीं
वहाँ क्या ईंट पत्थर की
चौकीदारी करेगा आदमी।
सब कुछ खोगया हो
वहाँ चौकीदार का क्या काम।

डर चिपका रहता है
उम्मीद की तस्वीर के पीछे।

डर कुर्सी का
उस के चार पायों का
शिखर के आगे
गहरी खाई होती है।

गश्त लगाता है डर
सत्ता के गलियारों में
दबंगों के पूरे इलाके में।

पुलिस की वर्दी में लगा
रहता है तमगा की तरह
लपेटे में आजाय जो
मत पूछना खैरियत उसकी।

डर रहता है अंधेरी गली में
अभी एक कन्या मर गई
देती रही दरोदीवार पर
खून की दस्तक लेकिन
डर ने ताले डाल रखे थे
हर घर में।

सूने राजमार्ग पर
गश्त लगाता है डर
महिला का अपहरण
देखता रहता है चुपचाप।

डर है न्याय मंदिर के
देवी देवताओं के मंदिरों के
और गुरुद्वारे के गुम्बदों
मस्जिद की मीनारों
गिरजाघरों के पास।

कभी तो अपने आप से
लगने लगता है डर
अपने वीभत्स चहरे से
दर्पण में अपने
गुनाहों के विम्ब से।

डर लगता है अपनों से
छिपे हुए खंज़र से
डरना कोई नहीं चाहता
लेकिन सब डरते हैं
अपनेअपने कारणों से।
सपेरा सांप से डरता नहीं
मरता है उसी के काटने से।

जो जान कर अजान
रहना चाहता है
उस डर से
जो कर रहा है पीछा
जन्म के दिन से।
अंत में हार जाता है।

नहीं है पहुँच उस
चौगान तक डर की
जहाँ फाड़ कर व्यवधान सारे
सच खडा है तान कर सीना
न मौत का डर
न जीने की तमन्ना।
SHIV JOHRI
ये तो सिस्टम है
ये तो सिस्टम है
देखता आरहा हूँ दो साल से
जेल में क्या नहीं है क्या नहीं होता
वह तो महज़ एक कमरा है
वी.आई.पी. दबंग आरोपियों के लिए
पांच सितारों का होटल तो नहीं है
बाहर मिर्च क्यों फ़ैली हुई है
अधकारी क्या बच्चों कों ज़हर दे
मेरी जेल में अस्पताल भी है
मरीजों के लिए पलंगों की व्यवस्था है
आधे खाली रखे जाते है
उनके लिए जो बीमार नहीं हैं
केवल वेतन से डाक्टर का
पेट भरता ही नहीं वह क्या करे
बाहर दूकाने लगी हैं
जो चाहो खरीदो भेज दो अन्दर
आधी तो पहुंच ही जायगी उस तक।
पहुंचाने की इजाजत
मुफ्त में मिलती नहीं।
सिस्टम में दीमक लगी है
सब जानते हैं।