भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डांडी सूं अणजाण / सतीश छींपा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होळै-होळै
डांडी चालतो,
रैवै
डांडी सूं अणजाण
किनारै-किनारै चालै
पण है बो अणजाण
आ कोनी जाणै कै
कठै टिब्बां
जिनावर मिलसी
कठै ढाणी
कठै पाणी मिलसी ?
होळै-होळै
डांडी चालतो
रैवै डांडी सूं अणजाण !