डाकिया / ऋषभ देव शर्मा

आने को रोज़ गली में आता है डाकिया
मेरे लिए न चिट्ठियाँ लाता है डाकिया

हर बार अपना मन मुझे मसोसना पड़ा
इनकार में बस हाथ हिलाता है डाकिया

कक्षा की कापियों में प्रेम पत्र जब लिखे
वे दिन दुबारा याद दिलाता है डाकिया

मेघों ! सुनाओ यक्षिणी का हाल अब तुम्हीं
रोता तुम्हारा यक्ष, सताता है डाकिया

लटका के इंतजार के सलीब पर मुझे
मुस्का के कील ठोंकता जाता है डाकिया

इसका है कौन? कौन इसे खत लिखे भला?
पागल करे है प्यार, बताता है डाकिया

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