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डाक्टर फ़ाउस्ट का घर / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय

रात में देर से
गगनचुम्बी इमारतों और मेहराबों के नीचे
मैं प्राग में ऐसे घूम रहा हूँ, मानो कोई सपना देख रहा हूँ
आकाश किसी कीमियागर की कुप्पी की तरह है —
                              जहाँ चमकीला सोना
नीली आग में पिघल रहा है,
चार्ल्स चौराहे की ढलान पर
बिना किसी थकान के चढ़ जाता हूँ मैं
और पहुँच जाता हूँ वहाँ,
जहाँ कोने में,
दवाघर के पास बने बगीचे में,
डॉक्टर फ़ॉउस्ट का घर है ।

मैं उनके दरवाज़े पर दस्तक देता हूँ,
हालाँकि मुझे यह बात मालूम है
कि डॉक्टर अपने घर पर नहीं हैं ।
मुझे मालूम है —
क़रीब दो सौ साल पहले
छत में बने एक छेद के रास्ते
गहरी रात में
शैतान उन्हें खींचकर अपने साथ ले गया था नरक में ।

मैं फिर भी दस्तक दे रहा हूँ
उसी घर के दरवाज़े पर । ख़ुदा की क़सम,
इस शैतान को मैं हुण्डी लिखकर देने को तैयार हूँ,
मेरे खून से हस्ताक्षर बना दूँगा हुण्डी पर ।
मैं उससे सोना-चाँदी नहीं चाहता, मैं अक़्ल और जवानी भी नहीं चाहता ।
अलगाव की वजह से मेरी कनपटी गरमा रही है ।
लानत है, भाई, लानत है
मेरी सेहत की जाँच के लिए
मुझे इस्ताम्बुल ले चलो !
आख़िर खर्च ही कितना आएगा इसमें ?

मैं फिर से खटखटाता हूँ, बार-बार खटखटाता हूँ,
लेकिन उनका दरवाज़ा वैसा का वैसा बन्द है ।
ऐसा क्यों है, मुझे बताओ, दुष्टात्माओ ?
मैं कुछ ज़्यादा तो नही माँग रहा हूँ ?
चीथड़ा-चीथड़ा हो चुकी इस आत्मा की क़ीमत
कुछ ज़्यादा तो नहीं माँग रहा ?
या फिर एक पैसा भी क़ीमत नहीं रही है इसकी अब ?

नीम्बू की तरह पीला चाँद
आकाश में धीरे धीरे ऊपर चढ़ रहा है ।
मैं डॉक्टर फॉउस्ट के घर के सामने खड़ा
हर रात की तरह आज भी
उनका बन्द दरवाज़ा खटखटा रहा हूँ ।

1957
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता रूसी अनुवाद में पढ़िए
               Назим Хикмет
         Дом Доктора Фауста

Поздней ночью
под башням, арками
я по Праге бреду, как во сне
Небо — колба алхимика —
                                            золото яркое
перегоняет в синем огне,
По откосу до площади Карла
            идешь, не чуя усталости.
Там на углу, возле клиники,
стоит в саду дом доктора Фауста.

Я стучу,
Дома доктора нет.
Известно —
лет двести назад
через дыру в потолке
вот такою же ночью глухой
черт утащил его в ад.

Я стучу.
В этом доме, ей-ей,
и я бы вручил хоть черту вексель,
вексель подписанный кровью моей.
Не прошу я золото, мудрости, юности.
Тоска холодит висок.
Черт подери,
ну что тебе стоит
меня в Стамбул отнести на чесок?!

Я стучу, стучу,
Но дверь заперта.
Отчего, скажи, Мефистофель?
Неужто я много слишком хочу?
Или не стоит уже ни гроша
в клочья изодранная душа?

Желтая как лимон, луна
                         медленно лезет вверх.
Я стою перед домом доктора Фауста.
Каждой ночью стучусь в закрытую дверь.

1957