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डाक टिकट / संत कुमार टंडन 'रसिक'
Kavita Kosh से
मैं हूँ भइया डाक-टिकट,
मुझे न कोई राह विकट।
डाकघरों में सहे प्रहार,
फिर भी कभी न मानी हार।
जहाँ कहो मैं चल देता हूँ,
सभी जगह तो रह लेता हूँ।
लक्ष्य जहाँ का भी ठहराओ,
वहीं सदा तुम मुझको पाओ।
चिपक जहाँ जिसके मैं जाता,
पक्का पूरा साथ निभाता।
बीच राह में साथ न छोडूँ,
पीछे कभी नहीं मुख मोडूँ।
मैं मंजिल से कभी न भटका,
नहीं राह में अपनी अटका।
चाहो तो ये गुण अपनाओ,
अपना जीवन सफल बनाओ।