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डाल से टूट कर जो बिखर जाएँगे / रविकांत अनमोल
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डाल से टूट कर जो बिखर जाएँगे
फिर ये पत्ते न जाने किधर जाएँगे
कौन अपना है अब, किसके घर जाएँगे
हम मुसाफ़िर न जाने किधर जाएँगे
हम तो पत्थर हैं क्या अपनी औकात है
तू सँवारेगा तो हम सँवर जाएँगे
है मुकद्दर में भटकन, भटकते हैं हम
होगा तक़दीर में तो ठहर जाएँगे
एक तेरे सिवा और मँज़िल नहीं
लौटना ही पड़ेगा जिधर जाएँगे
मेरी राहें बहुत हैं कठिन देखिए
कौन से मोड़ तक हमसफ़र जाएँगे
वो नकाब अपना उलटेंगे कुछ देर में
वो नज़ारा भी हम देखकर जाएँगे