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डाळि लाणि छ्वीं / प्रीतम अपछ्यांण
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डाळि लाणि छ्वीं
डाळि सुड़सुड़ी द्वी धार मा खड़ी
लाणि खड़ाखड़ी छ्वीं घड़ी द्वी घड़ी
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जुम्म टटगरीं दीदी चुप्प क्यो छई
गुम्म सोचूं मा छै क्या बानि का गई
का च वो फफराट तेरू ब्याळि छै कनू
पात वा ससराट कख आज कै जनू?