भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डुपट्टो फूलाँ भया / मालवी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
चीरा तो तम पेरजो रे बना पेंचा भोत हजार
डुपट्टो फूलाँ भर्यो लाला भोत हजार डुपट्टो फूलाँ भर्यो।
फूलाँ से भरियो सेवरो रे बना हीरा जड्यो रे जड़ाव
डुपट्टो फूलाँ भर्यो।
धारो झरोका को झाकणो रे बना म्हारो सरमीलो सुभाव
डुपट्टो फूलाँ का भर्यो।
थारे म्हारे झगड़ो लागसी रे बना सुनी हे माता बईरी सीख
डुपट्टो फूलाँ भर्यो थारे म्हारे झगड़ा लागसी रे
बना लागा हो बेन्या बेईरी सीख डुपट्टो फूलाँ भर्यो।
कंठी हो तम पेरजो रे बनाँ जामा भोत हजार
केसर भोत हजार डुपट्टो फूलाँ भर्यो।
कड़ा तो तम पेरजो रे बना हीरा भोत हजार
थारो झरोका को झाकणो रे बना म्हारो सरमीला सुभाव
डुपट्टो फूलाँ भर्यो।
इसी तरह जेवरों और परिवार के सदस्यों के नाम जोड़ते-जोड़ते यह गीत लम्बा होता चला जाता है।