भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डूबती जा रही सदा कोई / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डूबती जा रही सदा कोई
कर गया सुनके अनसुना कोई॥

दर्द होने लगा है हंसने में
ज़ख़्म फिर हो गया हरा कोई॥

बदहवासी-सी है हवाओं में
जल रहा है कहीं दिया कोई॥

रास्ते खिड़कियों को तकते हैं
हो गया फिर से हादसा कोई॥

देने वाले सज़ा-ए-मौत मुझे
मुझ पर इल्ज़ाम तो लगा कोई॥

कोई हमदर्द आज आया है
दर्द दे जायेगा नया कोई॥

साँस घुटने लगी हवाओं की
दिल जला या मकां जला कोई॥

हार किसकी है फ़त्ह किसकी दिल
देख ज़िंदा नहीं बचा कोई॥

आरज़ू है सुकूँ से मर जाऊं
अब पिला दे मुझे दवा कोई॥

एक-एक साँस पड़ी है ज़ख़्मी
आख़िरी साँस तक लड़ा कोई॥

मैं तेरी ज़िन्दगी का "सूरज" हूँ
छेड़ के देखे अँधेरा कोई॥