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डूबते सितारों के नाम-१ / रमेश रंजक

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गूँथ खुली वेणी में
हँसी किरण-फूल की
हमने क्या भूल की ?
भौंहें क्यों तन गईं बबूल की !

बनवासी शब्दों को
नागरिक बना कर
रेखाएँ खींची अपवाद की,
नए-नए अर्थों की
वंश-बेल पा कर
काँप गई धरती अनुवाद की

सामंती छंद-छाँह छोड़ कर
एक अदद गुणा, भाग जोड़ कर
अनब्याही रोशनी कबूल की
हमने क्या भूल की
भौंहें क्यों तन गईं बबूल की ?