भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डूबते सूरज की समझे नातवानी तो मैं जानूँ / उर्मिला माधव
Kavita Kosh से
डूबते सूरज की समझे नातवानी तो मैं जानूँ,
और अपनी छोड़ दे ये हुक्मरानी तो मैं जानूँ,
बादशाहत के नशे में चल रहा है झूम कर तू,
बिन नशे के जी ज़रा ये ज़िंदगानी तो मैं जानूँ,
हो गए गद्दीनशीं तो मार दी दुनियां को ठोकर,
सरहदों पर झोंक दे अपनी जवानी तो मैं जानूँ,
ग़ैर मुल्कों में उड़ी हैं धज्जियाँ अपने वतन की,
चिंदियों पर लिख कोई अच्छी कहानी तो मैं जानूँ,
ख़्वाब देना आसमां के, कौनसी खूबी है इसमें,
दे ज़रा अपने वतन को कुछ निशानी तो मैं जानूँ,