भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डूबें आप ये ख़्वाहिश की रुख़सारों ने / पूजा श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डूबें आप ये ख्वाहिश की रुखसारों ने
अजब सी चाहत पाल रखी है गालों ने

जैसे मुझको दिल से कोई काम नहीं
ऐसे डेरा डाल रखा है यादों ने

धोखों से दीवाने घायल होते हैं
इनको घायल नहीं किया तलवारों ने

बंटवारे में खैर दिवारें शामिल थीं
और कसर पूरी कर दी दरवाज़ों ने

पढ़ लेती तो खूब कमाती धन दौलत
जिस बेटी को फूँक दिया ससुरालों ने

अपनी अपनी कीमत माँ को समझा दी
कपड़ों की तो छोड़ो महज़ निवालों ने

आज ये लगता है कि बड़ा बनाया है
माँ की डाँट ने बाबा की फटकारों ने

ज़र्द पड़ा साँसों का खंडर बिखरा जब
दम तोड़ा खूंटी पर लटके वादों ने

दो कौड़ी के लोगों के खर्चे देखो
देश बेचकर पूरे किये जनाबों ने

मुफलिस नहीं बचेगा देश में अब कोई
एक यही सच कहा सियासतदारों ने

मजबूरी ने रातें तो रंगीन रखीं
उसे सताया दिन के स्याह उजालों ने

फिक्र जवाबों के मिलने की रही नहीं
उलझाए रक्खा था हमें सवालों ने