डूबे हुए बच्चे / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह
देखा तुमने, उनके लिए नहीं है कोई न्याय।
इसलिए स्वाभाविक है कि डूब जाना चाहिए उन्हें,
पहले बर्फ ले जाती है उन्हें अंदर
और फिर, जाड़े भर, उनके ऊनी स्कार्फ
तैरते हैं उनके पीछे जैसे जैसे डूबते हैं वे
उस क्षण तक जब अंत में वे हो जाते हैं शांत।
और जलाशय उठा लेता है उन्हें अपनी अनगिनत अंधकारमय बाहों में।
किन्तु उन्हें आनी चाहिए मृत्यु अलग तरह से,
वे जो हैं आरम्भ के उतने पास।
मानों वे थे हमेशा से ही
नेत्रहीन और भारहीन। इसलिए
शेष सब है स्वप्न, वह दीपक,
वह बेहतरीन श्वेत वस्त्र जो ढके हुए है मेज को,
उनके शरीरों को।
और फिर भी वे सुनते हैं वे नाम जिन्हें वे प्रयोग करते थे
चारे की भांति, फिसलते हुए जलाशय की गहराई में :
तुम कर रहे हो किसकी प्रतीक्षा
घर आओ, घर आओ, खोये हुए
नीले और स्थायी जल में।