डूब गयीं नौकाएं सारी / प्रमोद तिवारी

डूब गयीं नौकाएं सारीं
पानी पर तैरी पतवारें
सागर का बोझ कोई बढ़कर
मछली की पीठ से उतारे

बैसाखी टेक कर खड़ा है
उस नन्हें दीपक का हौसला
अंधियारा साथ लिए आंधी
कम करता जाता है फासला
कौन जिए अपनी सांसों पर
सब जीते राम के सहारे

धनुष हुए कभी
किन्हीं हाथों के
अंधे सम्मोहन में
फंस गये
तीरों से चले
और हिरणों के
तपते माथे पर धंस गये
औरों के पाप लिए सर पर
फिरते हैं हम मारे-मारे

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.