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डूब नहाऊँ / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
11
तुम देवता,
है शान्ति निकेतन-
झील- सा मन।
12
झील हँसे यों,
प्रेयसी देखे रे ज्यों
घूँघट ओट।
13
डूब नहाऊँ
पिय-झील जो पाऊँ
पार न जाऊँ।
14
झील सहमी
जेठ की दुपहरी
रवि-भृकुटि।
15
झील- नयन
तरुवर पलकें
नीर मगन।
16
रवि मुस्काया
पड़ गईं लकीरें
झील के माथे।
17
चन्दा छिछोरा
डाले बादल डोरा
झील को घेरा।
18
भागे रे घन
जीवन का है प्रश्न
झील के मन।
19
बहे है नीर
हुई आँखें भी झील
झील के तीर।
20
झील-सी हूँ मैं
देखो, खोजो स्वयं को
मेरे भीतर।
21
मुझे स्वीकार
आपका उपकार
जीवन- सार !