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डॅर / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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आबी केॅ तेॅ देखॅ हमरॅ प्राणपति
आय कतना भयानक लागै छै पहाड़ॅ के हाँसबॅ
कि आकाश होय गेलॅ छै सुरसा रें मुँह
इंजोरिया-दाँत
नदी के दोनों किनारॅ जेनां दू हाथ
लागै छै सभ्भैं मिली केॅ खाय जैतॅ

ई वहेॅ जेठौरॅ के ऊच्चॅ-नीच्चॅ वाला पहाड़ छेकै
जे तोरा साथें रहला पर
आपनॅ पांख पसारी केॅ
चढ़ाय केॅ अपना पर घुमावै छेलै
आरो आय
वही पहाड़ॅ केॅ लागै छै
हजारो-हजार हाथ होय गेलॅ छै
आरो नद्दी किनारा के सब बाँस
ओकरा हाथॅ में तनी गेलॅ छै भाला नांकी
हवा में करची नाग-नांकी फुफकारै छै
लागै छै
हजारो नाग के फन वाला भाला लेनें
पहाड़ चललॅ आवी रहलॅ छै दौड़लॅ
हेना में तोंय नै
तेॅ हम्में चाहै छियै
कि ई आकाश उल्टी जाय
आरो हम्में एकरॅ गहराई में डूबी केॅ मरी जांव।