भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डेडर / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
बिरखा आई आया डेडर
फुदक-फुदक हरखाया डेडर
कदै पाळ पर नाचै उछळै
कदै किनारै आवै डेडर
छाळ मार पाणी में कूदै
पग पतवार बणावै डेडर।
बैठ छियां में ए सुस्तावै
सामल बाजो सैंग बजावै
बिरखां आयां डेडर गावै
टर्र-टर्र टर्रावै डेडर।
लाम्बी सारी जीभ काडगे
माछर माखी ऐ गटकावै
सांप संळीटां सूं ऐ डरपै
झाड़ी में बड़ ज्यावै डेडर।
बिरखा आई आया डेडर
फुदक-फुदक हरखाया डेडर।