भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डॉक्टर अंकल! / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डॉक्टर अंकल! इतनी कडुवी
दवा कहाँ से लाते हो?
हो बीमारी एक हमें पर
गोली चार खिलाते हो।

ये बुखार क्यों हम बच्चों को
ही हर दिन हो जाता है?
सच-सच कहना क्या ये तुमको
आकर कभी सताता है?
तुमसे डरता होगा शायद
तुम तो सुई लगाते हो।

तुम्हें पता क्या, मुझको छींकें
कल कितनी ज्यादा आईं,
नाक हो गई पानी-पानी,
आँखें दोनों भर आईं,
सदी-खाँसी को क्यों जल्दी
छुट्टी न दिलवाते हो?