डॉट्स . . . की भाषा ! / आनंद कुमार द्विवेदी
कभी कभी
सारा अध्यन ...सारी शिक्षा,
हर किताब
हर सीख ....और
तुम्हारी समझायी हर बात पर
भारी पड़ जाता है मेरा दर्द,
और ऐसे क्षणों में फिर मैं
कर बैठता हूँ .....
तुमको एक 'एस एम एस'
जिसमे लिखा होता है केवल एक नाम
और कुछ डॉट्स. . . बस !
अच्छे से जानता हूँ कि
तुम्हारे निजी संसार में
मेरा इस तरह
रह रह कर जिन्दा होना
तुम्हें जरा भी पसंद नही
पर क्या करूं ?
मैं ये भी तो अच्छी तरह से जानता हूँ ...कि
सारी दुनिया में केवल
एक तुम्हें ही
उन डॉट्स . . . की भाषा पढ़नी आती है !
"मैं आज भी वहीँ हूँ "
मेरे लिए यह कथन ...
न पूरा सच है न पूरा झूठ
धरती का गुरुत्वाकर्षण
कुछ तो कमजोर पड़ा है
अब वह सिमटकर
केवल उतना भर रह गया है
जितनी कि तुम स्वयं
और जिस किसी भी दिन
तुम नही रहोगी ........
मैं झट से
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर चला जाऊंगा
पर
एक बात बोलूं
मेरी जरा भी दिलचस्पी
न तो निराकार में है
और न मोक्ष में
मैं तो सृष्टि के अंत तक चलता रहना चाहता हूँ
एक तुम्हारी सुगंध भर लिए हुए
जिससे सुवासित है
मेरी आत्मा ....
और
मेरे आने वाले अनेक जन्म !!