डॉन किख़ोते का रचयिता, पियरे मेनार्ड / गिरिराज किराडू
पियरे मेनार्ड एक किताब लिखना चाहता है पर पहली मुश्किल तो यही कि वो ख़ुद कोई नहीं उसकी जीवनी तो शायद है 
कोई जीवन नहीं दूसरी यह कि वह एक लिखी हुई किताब को किसी नये तरीके से नहीं लिखना चाहता ऐसा तो सभी लेखक 
करते ही हैं वह शताब्दियों में हज़ारों-लाखों के पढ़ी हुई किताब को शब्द दर शब्द वैसे ही लिखना चाहता है और बेचारा पियरे 
उसकी तीसरी मुश्किल यह कि वो सोचता है शताब्दियों में हज़ारों-लाखों के पढ़ी हुई किताब को शब्द दर शब्द लिख कर ही वो 
मौलिक लेखक हो पाएगा कि इसी तरह जैसा सभी लेखक नहीं करते वैसा करके ही वह एक लेखक हो पाएगा
कितना ख़ुशनसीब है पियरे मेनार्ड बस यही तीन मुश्किलें हैं उसकी जान को
पर इतनी आसान किताब भी जिसमें उसे शताब्दियों में हज़ारों-लाखों के पढ़ी हुई किताब को शब्द दर शब्द फिर से 
लिखना भर है वह कभी पूरी नहीं लिख पाएगा किताबों की भूलभूलैया में घूमते हुए वह शताब्दियों में हज़ारों-लाखों के 
पढ़ी हुई किताब के लेखक से टकरा जाएगा और कहेगा मेरी किताब को मुझसे पहले लिखकर आप मैं हो गए आपकी 
किताब को लिखते-लिखते मैं आप हो गया हूँ क्या मिला आपको यह करके मैं कितना मज़े में था बिना जीवन के अब 
चैन पड़ गया आपकी आत्मा को जी में आता है आपको दरिया में डुबा दूँ और किनारे बैठकर मुजरा करूँ आपके डूब 
मरने का इधर आप डूब मरते रहें उधर मैं खूब सारी बीयर पीता रहूँ
 
	
	

