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डॉरनोच के तट पर है राबर्ट बर्न्स / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
कहाँ हो, हवा में
कहाँ हो, हवा की स्वरधारा में!
कहाँ हो, सागर की छोड़ी हुई बंजर जमीन में!
कहाँ हो, सागर के बीरान सीने में!
कहाँ हो, हँस कर नाच उठती आँखों में!
कवि बर्न्स
अपने स्कॉट भूलोक में कहाँ हो।
मेरे हर सवाल का हवा सिर्फ हँसी!
जंगल ने मुट्ठी भर गंध ही लूटा दी।
सागर नाचा ठाठे मार कर!
मैंने कहा:
‘यात्री है बर्न्स।’
सबने दुहराया:
‘बर्न्स हम सब का है।’
-3.6.86 डॉरनोच, स्कॉटलैण्ड