भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डॉ० अम्बेडकर के लिए / नामदेव ढसाल
Kavita Kosh से
आज हमारा जो भी कुछ है
सब तेरा ही है
यह जीवन और मृत्यु
यह शब्द और यह जीभ
यह सुख और दुख
यह स्वप्न और यथार्थ
यह भूख और प्यास
समस्त पुण्य तेरे ही हैं
'तेरी उँगली थाम चला हूँ मैं' नामक कविता-संग्रह से।