भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डोंगी ही सही / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
तुम
रह गए
बडे़ जहाज की तरह
तट से दूर
मैं छोटी-सी
डोंगी ही सही
आख़िर
पहुँच गई न
तट तक...।