डोमखाना / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
सड़क के किनारे पुराना डोमखाना,
वैशाखी बैठल गावो हल निरगुण गाना,
कचबच झोपड़ पट्टी
आसमान के नीचे सब सूप-दौरी बीने हे
ओजै जाकऽ लोग सब कीने हे
गंदगी के बीच सब जिए हे।
फटेहाल, कंगाल कहाँ कोय पढ़े हे,
सब आगे बढ़ल डोमखाना ओजैके ओजैहे।
नंगे उधार बुतरू कचबचिया सन
फटल मैल-कुचैल साड़ी में जनानी,
डोमखाना के पुरानी हे कहानी।
झोपड़ी से सटल सूअरबाड़ा
बांस के फरांठी के घेरा
सूअरनी आर ओकर पालनहार के कत्ते ने बच्चा
चारों तरफ के गंदगी में सूअर पसरल हे
गाँव के भोज-पात के दिन सूअरो अघाहे
सूअरबाड़ा आर डोमखाना के जिनगी एक समान
शिक्षा के सूरूज एजा अभियो नय उगल।
मरनी-हरनी में जनानी निगुण गावे हे
मरद श्मशान में अंतिम संस्कार के भागीदार बने हे।
नय एकर घर बनल, नय एकर दुआर
दो कानदारी मंे खाहे उधार
कबीरपंथी वैशाखी हल कंठीधारी
सब दिन शाकाहारी
वैशाखी के नमन! कैलक स्वगै गमन।